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कविता

रोवाँ झारेला जब जब चुनाव आवैला

हरेराम द्विवेदी


रोवाँ झारेला जब जब चुनाव आवैला
तरवा चाटैं धीरे धीरे सुहरावैला
हार जीत से कउनो मतलब नाहीं राखै
जेतना भी लह जाला ठाट से लहावैला
गाँव से सिवाने तक
साव के दुकाने तक
सड़क से शुरू होके
घरे के दलाने तक
चोकरैला घूम-घूम कइके हड़कम्‍म
गजरदम्‍म गजरदम्‍म

इनसे पूछै कब्‍बो उनसे बतियावैला
इनकर उनसे उनकर इनसे बतलावैला
आग लगाके लामे से खाली देखैला
मोका मिलतै ओम्‍में घिउवै ढरकावैला
दादा से पोता तक
पिंजरा के तोता तक
लुत्ती लेसैला ऊ
चिरई के खोता तक
उछरैला कूदैला छम्‍म छमाछम्‍म
गजरदम्‍म गजरदम्‍म

अमन चैन से केहू गाँव में न रह पावै
आपन दुख दरद नाहीं केहू से कह पावै
अइसन माहुर घोरै पता न चलै तनिको
हावा से नद्दी तक चैन से न बह पावै
साँझ से सबेरे तक
घरे के बँड़ेरे तक
अगिलही लगावैला
रइन के बसेरे तक
फरदउरे भी सबके लागै सकदम्‍म
गजरदम्‍म गजरदम्‍म 


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